*कामनसैंस कामन लोगों की समझ में नहीं आता।*
नमस्कार दोस्तों मैं आपका दोस्त *राहुल भारद्वाज* आज कुछ कामन सी बातें कामनसैंस पे करने के लिए आपके सामने रूबरू हुआ हूँ।
दोस्तों ये बात बिल्कुल ही सही है कि हम अपना निर्णय अपने कामनसैंस के अनुरूप ही लेते हैं। लेकिन कामनसैंस वास्तव में है क्या...? मुख्य सवाल तो यही है....?
कामनसैंस वो बला है जिससे हम किसी भी मुद्दे को अपनी अंतरात्मा के तराजू पे तोलते हैं ओर फिर कुछ निर्णय लेते हैं। इसे हम सिक्स सैंस भी कह सकते हैं और अपनी आत्मा की आवाज भी।
तो दोस्तों आजकल एक बहुत बडा मुद्दा छिडा हुआ है नेटवर्क मार्केटिंग का। सोसल मीडिया पे यही छाया हुआ है। अलग अलग कम्पनी के लीडर्स अपनी अपनी कम्पनियों को बेहतर बताने की रेस में लगे पडे हैं।
भारत में नेटवर्क मार्केटिंग की अब एक क्रांति सी आ गई है। बहुत सी कम्पनियां आ गई है और सभी अपने आपको नम्बर वन बताने से पीछे नहीं हट रही है। जबकि ज्यादातर कम्पनी लोगों को बेवकूफ ही बना रही हैं।
अब ऐसी स्थिति में हमें अपने कामनसैंस को यूज करने की सख्त आवश्यकता है।
*सत्य में विलंब हो सकता है मगर सत्य कभी पराजित नहीं हो सकता।*
कोई भी बिजनेस हमेशा ग्राहकों से ही चलता है और ग्राहक कौन है..? हम, आप और पूरा हिन्दुस्तान। भारत इस समय दूनियाँ की सबसे बडी मार्केट में से एक है।
मगर इसका मतलब ये नहीं कि आप कुछ भी बेचेंगे और किसी भी दाम में बेचेंगे तो बिकेगा।
तो इसके लिए कम्पनियों ने चाल चली कि उन्होंने अपने उत्पाद को यूनिक बता कर मार्केट में उतारा, मोटिवेशनल स्पीकर को हायर किया, कुछ लीडर्स को अपने साथ शामिल किया, लोगों को स्वप्न लोक दिखाए किसलिए ताकि लोगों को बरगला सके बेवकूफ बना सके, अपने उत्पाद को मनमाफिक दामों पर बेच सके।
*लोगों को उनकी जरूरत के उत्पाद वाजिब किमत पर देने के व्जाय उनहे सपने बेचे जा रहे हैं मंहगी मंहगी कारे दिखाई जा रही हैं, बंगले दिखाए जा रहे हैं।*
लाखों करोड़ों लोग जुड भी रहे हैं या यूं कहूँ कि बेवकूफ बन रहे है लेकिन क्या सभी की कारें आ गई बंगले बन गए। मैं क्या ज्वाब दूं आप ही बताएँ। लगाएँ *कामनसैंस*..?
दोस्त आपके और हम सबके ड्रीम हो सकते हैं और हैं भी लेकिन क्या सिर्फ सपने देखने से सब कुछ संभव हो पायेगा....?
क्योंकि पैसा तो बिजनेस करने से ही आएगा, और बिजनेस होगा सेल करने से यानी कि उत्पाद के ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों के होने से। क्यों सही कहा ना..?
अब बात करते हैं ग्राहक कि और वो भी अपने देश के ग्राहकों की। हम हिन्दुस्तानी हैं दोस्त हमें चाहिए सस्ता और बढिया। अब बहुत से लोग कहेंगे कि सस्ता और अच्छा तो हो ही नहीं सकता तो भाई साहब आप लोगों कि जानकारी के लिए बता दूं कि ये बात हिंदुस्तान का सबसे ज्यादा पैसे वाला शख्स भी जानता है कि हमें सस्ता और अच्छा चाहिए और उसने दिया भी और बाकी कम्पनियों की अच्छी तरह से बैंड भी बजाई। आईडिया, वोडाफोन, टाटा इंडिकोम, एयरटैल आदि का क्या हाल किया है ये आपको बताने की जरुरत तो है नहीं।
तो मैं कह रहा था कि हमें चाहिए सस्ता और बढिय़ा और ये ही हमारी मार्केट है लेकिन ज्यादातर कम्पनियां बेच क्या रही हैं, महंगा और घटिया। कुछ लीडर्स जो इन कम्पनियों के पास हैं वही गिने चुने 5 से 7 लीडर जिन्हें कभी ये कम्पनी खरीद लेती है तो कभी वो बस यही वो लोग हैं जो पूरे हिन्दुस्तान की जनता को सपनों का झुंझणा दिखाकर पागल बना रहे हैं।
*गडरिया जानते हैं ना क्या होता है हां सही समझे भेड चराने वाला चरवाहा। वो अपने 100 -150 भेडों के झूंड में 4 - 5 कुत्ते भी रखता है ताकि भेड इधर उधर ना हो।*
मेरी इस कहानी का इस लेख से कोई ताल्लुक नहीं बाकी कामनसैंस लगाना अब तक तो सीख ही गए होगे।
हमें चाहिए हमारे घरों में यूज होने वाला सामान वो भी वाजिब दामों में और बहुत सी कम्पनी आपको क्या बेच रही है मेरी तो समझ मे आ नहीं रहा, और कोई अगर घरेलू सामान दे भी रही है तो लोकल मार्केट से उसके रेट डेढ या दोगुना है।
*हमारे दादा, परदादा, पिढियों से यही तो सामान यूज किया है और ये कम्पनियां अगर अमृत ही बना रही है तो हस्पताल क्यों बढते जा रहे हैं लेकिन हमारे सामने डेमो एसे पेश किया जाता है कि हम बेवकूफ बन ही जाते है, टेस्टोमोनियल एसे दिखाए जाते हैं जैसे कोई ओर कम्पनी इससे बेहतर है ही नहीं, अपने उत्पाद को यूनिक बता कर बेचेंगे क्योंकि यूनिकनेस मासूम लोगों को बेवकूफ बनाने का एक तरीका भी तो है आम आदमी बेचारा कौन सा लैब टेस्ट करेगा।*
लेवल और रैंक के चक्रव्यूह में एसा फसाते हैं कि आप अपने घरों को गोदाम बना ही लेते हैं और फिर वो सामान मिलता है एमेजॉन, फ्लिपकार्ट आदि पर, कोई भूत प्रेत थोड़े ही बेचते हैं इन वैबसाइट पर आपकी कंपनी का सामान नैटवर्कर ही तो देता है लेकिन कंपनी को क्या उसे तो बिजनेस चाहिए। 60 साल
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